अग्नि
अग्निदेश से आ रहा मै
अग्निपथ पर जा रहा मै
अग्निवीरो की सन्तान मै
अग्निपत्रो का फ़रमान मै
अग्निकणो की इज़ाद ये इरादे
अग्नि-दग्ध फ़ौलाद ये वादे
अग्निसम उर्ध्वगामी है जीवनपथ
अग्नि तेजपुन्ज मन, तन श्वेद लथपथ
Teaching and researching religions, languages, literatures, films, and ecology of India: http://philosophy.unt.edu/people/faculty/pankaj-jain
Dr. Pankaj Jain
Sunday, July 15, 2007
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