भले हठीली हकीकते हो हरदम
ख्वाबो को खिलाते रहना
चाहे सख्त सचाइयां सताये
सपनों को सजाते रहना
भले तमाम तूफ़ान टूटे
उम्मीदों की नाव बनाना
चाहे पथरीले पर्वत हो पथ मे
नई मन्ज़िलों को पाते जाना
भले मुश्किले मन्डराये कितनी
सदा मुस्कानें महकाना
चाहे कांटों की चुभन हो पर
कुसुम क्यारिया लगाना
न कभी झुकना, न ही रुकना
रीढ सदा सीधी रखना
न डरना चिन्ताऒ से कभी
सीना तान सर ऊंचा रखना
Teaching and researching religions, languages, literatures, films, and ecology of India: http://philosophy.unt.edu/people/faculty/pankaj-jain
Dr. Pankaj Jain
Sunday, July 15, 2007
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1 comment:
yes. really like this text :))
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